हमारे देश में मकर संक्रांति के त्योहार का विशेष महत्व है। 14 जनवरी को यह पर्व हर साल मनाया जाता है,ऐसा माना जाता है कि इन दिन का सीधा संबंध सूर्य के दिशा परिवर्तन से है। इस दिन सूर्य अपनी देश परिवर्तन करके मकर राशि में प्रवेश करता है और सूर्य के इस राशि परिवर्तन से ठंड का मौसम कम होने लगता है और धीरे -धीरे मौसम में गर्मी आने लगती है। मकर संक्रांति के दिन सूर्य उत्तरायण में प्रवेश करता है। इस दिन का हमारे लिए विशेष महत्व और और इस दिन की सूर्य की दिशा परिवर्तन विशेष रूप से सभी राशियों को प्रभावित करता है।
संक्रांति शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई
‘संक्रांति’ संस्कृत शब्द का अनुवाद ‘स्थानांतरण’ के रूप में किया जाता है इसका उपयोग सूर्य के एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र में जाने वाली क्रिया की और इशारा करता है। जो हमारे पूर्वजों ने सहस्राब्दियों पूर्व सृष्टि की बारीकियों, सूर्य और ग्रहों की गति, आकार और देश को जाना था। एक वर्ष में बारह संक्रांति का पालन इसका उपयुक्त उदाहरण है।
सूर्य का संक्रांति में महत्व
सूर्य एक शक्ति है, इसका विशेष महत्व है। यह वह ऊर्जा है सूर्य हमारे ग्रह पर जीवन का निर्वाह करता है, इसका समर्थन तो आधुनिक विज्ञान भी करता है। सूर्य का तेज ऐसा अनुभव है जो हम सभी ने किया है, सूर्य का तेज इतना उज्ज्वल होता है कि सूरज को नग्न आंखों से देखना संभव नहीं होता । प्राचीन काल के ऋषियों ने सूर्य का अनुसरण किया। गीता में बताया गया है कि, जिसका हम अनुसरण करते है हम वही बन जाते है इसलिए प्राचीन काल में ऋषि सूर्य की तरह आभाशाली थे,उनके पास सूर्य के समान शक्तियां भी थीं
मकर संक्रांति का महत्व और सूर्य से संबंध
मकर संक्रांति का प्राचीन काल में विशेष महत्व था, क्योंकि यह सूर्य के उत्तर दिशा की ओर गमन जिसे संस्कृत में उत्तरायण कहा जाता है, उसके शुरू होने का मुहूर्त था। यह अंधविश्वास नहीं है, इसकी पुष्टि सूर्य के प्रक्षेपवक्र में दक्षिणी अक्षांश नामकरण से होती है, जिस नक्षत्र में सूर्य उस समय प्रवेश करते थे । यह शुभ काल के प्रारंभ को चिह्नित करता है क्योंकि मकर संक्रांति से दिन लंबे और उज्जवल हो जाते हैं।