हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने से ही नव वर्ष होता है। चैत्र मास की संक्रांति से ही बसंत आगमन की खुशी में उत्तराखंड में फूलों का त्यौहार फूलदेई मनाया जाता है, फूलदेई पर्व प्रकृति के लगाव का पर्व है।
उत्तराखंड की संस्कृति और परंपरा अनूठी है। यहां के पर्व और त्यौहार किसी न किसी रुप में एक खास संदेश देते हैं। जो कि परंपरा के साथ प्रकृति से भी जुड़े रहते हैं। एक ऐसा ही पर्व आजकल उत्तराखंड में मनाया जाता है। जो कि एक माह तक मनाया जाता है। जिसे फूलदेई पर्व कहा जाता है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी फूलदेई को बाल पर्व के रूप में प्रति वर्ष मनाने की घोषणा की है।इस त्योहार को फूल सक्रांति भी कहते हैं फूलदेई पर्व प्रकृति के लगाव का खास पर्व है। इस त्योहार को फूल सक्रांति भी कहते हैं। इन दिनों हर तरफ हरियाली और फूलों की बयार नजर आती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र महीने से ही नव वर्ष होता है और नववर्ष के स्वागत के लिए खेतो में सरसों खिलने लगती है और पेड़ो में फूल भी आने लग जाते है। चैत्र मास की संक्रांति अर्थात पहले दिन से ही बसंत आगमन की खुशी में उत्तराखंड में फूलों का त्यौहार फूलदेई मनाया जाता है, जो कि बसन्त ऋतु के स्वागत का प्रतीक है। इस फूल पर्व में छोटे बच्चे सुबह सुबह सूर्योदय के साथ-साथ घर-घर की देहली पर रंग बिरंगे फूल को चढ़ाते हुए घर की खुशहाली, सुख-शांति की कामना के गीत गाते हैं अर्थात जिसका मतलब यह है कि हमारा समाज फूलों के साथ नए साल की शुरूआत करे। बदले में लोग बच्चो को गुड़, चावल व पैसे देते हैं। फूलदेई पर्व के दिन एक मुख्य प्रकार का व्यंजन बनाया जाता है जिसे सयेई कहा जाता है। कहीं-कहीं ये पर्व एक माह तो कहीं एक सप्ताह तक चलता है। बच्चे फ्योंली, बुरांस और दूसरे स्थानीय रंग बिरंगे फूलों को चुनकर लाते हैं और उनसे सजी फूलकंडी लेकर घोघा माता की डोली के साथ घर-घर जाकर फूल डालते हैं। घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है।