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जाने? क्यों मनाया जाता है गणेश चतुर्थी का पर्व

गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है?

गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है जो बाधाओं को दूर करने वाले और ज्ञान व समृद्धि के संरक्षक भगवान गणेश के सम्मान में प्रतिवर्ष मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी की शुरुआत 16वीं शताब्दी में मराठा राजा शिवाजी के शासनकाल के दौरान हुई थी।

गणेश चतुर्थी की शुरुआत किसने और कब की थी?

कहते हैं कि गणेश चतुर्थी तिथि को ही भगवान गणेश की उत्पत्ति मां पार्वती ने की थी, इसलिए इस तिथि को उनके जन्मदिन के तौर पर मनाते हैं। इसी के साथ 10 दिन का गणेश उत्सव मनाया जाता है।

गणेश चतुर्थी का उद्देश्य क्या है?
पौराणिक मान्यता है कि गणेश चतुर्थी पर भगवान गणेश की मूर्ति घर लाकर उनकी 10 दिनों तक विधि-विधान के साथ पूजा करते हुए अनंत चतुर्थी के दिन गणेश जी की मूर्ति का विसर्जन करने से भक्तों के सभी दुख दूर हो जाते हैं। आइए, जानते हैं गणेश चतुर्थी का महत्व और गणेश चतुर्थी की कहानी। गणेश चतुर्थी 7 सितम्बर, शनिवार को है।

गणेश चतुर्थी का मुहूर्त क्या है?
गणेश चतुर्थी 2024 भगवान गणेश के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में 7 सितंबर से 17 सितंबर तक मनाई जाएगी। इस त्यौहार में पूजा विधि जैसे विस्तृत अनुष्ठान शामिल हैं, जिसमें गणेश की मूर्ति स्थापित करना और उसकी पूजा करना और खुद को शुद्ध करने के लिए उपवास करना शामिल है। 7 सितंबर को शुभ मुहूर्त सुबह 11:25 बजे से दोपहर 1:55 बजे तक है।

गणेश चतुर्थी व्रत कथा
गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे. वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा. शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया. यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं. खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया.

यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया. बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा कि यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे.’ यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं.

एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया. उसकी श्रद्धा से गणेश जी प्रसन्न हुए. उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा. उस पर उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों.’

तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए. इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई. चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया. इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई.

तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई. यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई. तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया. व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले. उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है. इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं.

गणेश चतुर्थी पर कौन सा भोग चढ़ाएं?
मोदक को गणपति का पसंदीदा प्रसाद माना जाता है । कुछ अन्य गणेश उत्सव व्यंजन जो आप तैयार कर सकते हैं वे हैं लड्डू, खीर, हलवा, पूरन पोली आदि।

गणेश जी को पानी में क्यों विसर्जित किया जाता है?
यह अनुष्ठान भगवान गणेश के जन्म चक्र को दर्शाने के लिए किया जाता है; जिस तरह उन्हें मिट्टी/पृथ्वी से बनाया गया था, उसी तरह उनकी प्रतीकात्मक प्रतिमा भी बनाई जाती है। मूर्ति को पानी में विसर्जित किया जाता है ताकि गणेश भक्तों के घर या मंदिर में ‘रहने’ के बाद अपने घर वापस आ सकें, जहाँ गणेश चतुर्थी अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।

 

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